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Thursday 24 September 2015

श्रीनिवास गद्यम Srinivasa Gadyam


Sanskrit literary works are either in the form of gadyam (prose) or padyam (poetry). Gadyam is written in prose style with alternate long and short sentences with many adjectival phrases. Padyam is expressed in the form of verses with four quarters (pAdam) usually and is marked by either the number of syllables (aksharA-s) or the number of syllabic instants (mAtrA-s). Padyam uses many metres and challenges the skill of the poets.

This Srinivasa Gadyam was composed by Sriman Srishaila Srirangacharyar. The last part of this gadyam starting with ragas and closing with mangalam are not found in the original source. The TTD Vedaparayanadar Sri P.V.Ananthasayanam Iyengar included it for recital.



 श्रीवॆंकटाद्रि निलयः कमलाकामुकः पुमान

अभंगुर विभूति र्नस्तरंगयतु मंगळम

श्रीमदखिल महीमंडल मंडन धरणिधर मंडलाखंडलस्य,

निखिल सुरासुर वंदित वराह क्षॆत्र विभूषणस्य,

शॆषाचल गरुडाचल वृषभाचल नारायणाचलांजना चलादि शिखरि मालाकुलस्य,

नाथमुख भॊधनिधि वीथिगुण साभरण सत्व्तनिधि तत्व्तनिधि भक्ति गुणपूर्ण श्री शैल पूर्ण गुणवशंवद परम पुरुष कृपा पूर विभ्रमदतुंगशृंग गलद्गगन गंगासमालिंगितस्यः

सीमातिगगुण रामानुज मुनि नामांकित बहुभूमाश्रय सुरधामा लयवनरामा यतवनसीमा परिवृतविशंकटतट निरंतर विजृंभित भक्तिरसनिर झरानंतार्याहार्य प्रस्रवण धारापूर विभ्रमद सलिलभर भरित महा तटाकमंडितस्य,

कलिकर्दममलमर्दन कलितॊद्यम विलसद्यमनियमादिम मुनिगण निषॆव्य माण प्रत्यक्षी भवन्निजसलिल समज्जननमज्जननिखिल पापनाशन पापनाशन तीर्थाध्यासितस्य

मुरारि सॆवक जराधिपीडित निरार्तिजीवन निराशभूसुर वरातिसुंदर सुरांगना रतिकरांग सौष्ठव कुमारताकृति कुमारतारक समापनॊदय दमानपातक महापदामय विहापनॊदित सकल भुवन विदित कुमार धाराभिधान तीर्थाधिष्ठितस्य

धरणि तलगत सकलहत कलिलशुभ सलिलगत बहुलविविध मलहति चतुर रुचिरतरवि लॊकमात्रविदळित विविध महा पातक स्वामि पुष्करिणी समॆतस्य

बहुसंकट नरकावट पतदुत्कट कलिकंकट कलुषॊद्भट जनपातक विनिपातक रुचिनाटक करहाटक कलशाहृत कमलारत शुभमज्जन जलसज्जन भरित निजदुरित हतिनिरत जनसतत निरर्गळपॆपीयमान सलिल संभृत विशंकट कटाहतीर्ध विभूषितस्य

ऎवमादिम भूरिमंजिम सर्वपातक गर्वहापक सिंधुडंबर हारिशंबर विविधविपुल पुण्य तीर्थ निवह निवासस्य

श्रीमतॊ वॆंकटाचलस्य

शिखरशॆखर महाकल्पशाखी,

खर्वीभवदतिगर्वी कृतगुरुमॆर्वीश गिरिमुखॊर्वीधरकुलदर्वीकर दयितॊर्वी दरशिखरॊर्वीसतत सदुर्वी कृतिचणनवघनगर्वतर्वणनिपुण तनुकिरण मसृणित गिरिशिखरशॆखर तरुनिकरति मिरः

वाणीपति शर्वाणीदयितॆंद्राणीश्वरमुखनाणीयॊरसवॆणीनिभ शुभवाणी नुतमहिमाणी यस्तरकॊणी भवदखिलभुवन भवनॊदरः

वैमानिक गुरुभूमाधिक गुण रामानुजकृतधामाकरकरधामारिदर ललामाच्छकनक दामायित निजरामालयनकिसलयमय तॊरण मालायितवनमालाधरः

कालांबुद मालानिभनीलालकजालावृतबालाब्जसलीलामलफालांक समूलामृत धाराद्वयावधीरणधीरललिततरविशदतर घनघन सारमयॊर्व्धपुंड्र रॆखाद्वयरुचिरः

सुविकस्वर दळभास्वर कमलॊदर गतमॆदुर नवकॆसर ततिभासुर परिपिंजर कलितांबर कलितादर ललितॊदर तदालंबजंभ रिपुमणिस्तंभ गंभीरिमदंभस्तंभन समुज्जृंभ माण पीवरॊरुयुगळ तदालंब पृथुलकदळी मुकुळ मदहरण जंघालजंघायुगळः

नव्यदळ भव्यकल पीतमल शॊणिमल सन्मृदुल सत्किसलयाश्रुजलकारि बलशॊणतल पत्कमलनिजाश्रय बलबंदीकृतशरदिंदुमंडली विभ्रमदादभ्रशुभ्र पुनर्भवाधिष्ठि तांगुळी गाढनिपीडित पद्मासनः

जानुतलावधिलंभिविडंबित वारणशुंडा दंडविजृंभित नीलमणि मय कल्पकशाखा विभ्रमदायि मृणाळलतायित समुज्व्जलतर कनक वलयवॆल्लितैकतर भाहुदंडयुगळः

युगपदुदित कॊटिखरकर हिमकर मंडल जाज्ज्वल्यमान सुदर्शन पांचजन्य समुत्तुंगित शृंगापरबाहुयुगळः

अभिनवशाण समुत्तॆजित महामहानीलखंड मदखंडननिपुण नवीन परितप्त कार्तस्वरकवचित महनीय पृथुलसालग्राम परंपरागुंफित नाभिमंडलपर्यंत लंबमानप्रालंबदीप्ति समालंबित विशालवक्ष स्थलः

गंगाझरतुंगाकृतिभंगावलिभंगावहसौधावलिबावह धारानिभ हारावळिदूराहत गॆहंतरमॊहावहमहिममसृणित महातिमिरः

पिंगाकृतिभृंगारुनिभांगार दळांगामल निष्कासित दुष्कार्यघ निष्कावळि दीपप्रभ नीपच्छवि तापप्रद कनकमालिका पिशंगितसर्वांगः

नवदळित दळवलित मृदुललित कमलतति मदविहति चतुरतर पृथुलतर सरसतर कनकसर मयरुचिर कंठिका तमनीयकंठः

वाताशनाधिपतिशयन कमनपरिचरण रतिसमॆताखिल फणधरतति मतिकर कनकमय नागाभरण परिवीताखिलांगावगमित शयनभूताहिराज जातातिशयः

रविकॊटि परिपाटी धरकॊटीर वराटीकितवाटीरसधाटी धरमणिगण किरण विसरण सततविधुत तिमितमॊहगर्भगॆहः,

अपरिमित विविधभुवनभरिताखंड ब्रह्मांडमंडल पिचंडिलः

आर्यधुर्यानंतार्य पवित्रखनित्रपात पात्रीकृत निजचुबुकगत व्रणकिण विभूषणवहन सूचितश्रित जनवत्सलतातिशयः

मड्डुडिंडिम डमरुझर झर काहळी पटहावळी मृदुमर्दलालि मृदंग दुंदुभि ढक्किकामुख हृद्यवाद्यक मधु मंगळ नादमॆदुर विसृमर सरसगान रसरुचिर संततसंतन्यमान नित्यॊत्सव पक्षॊत्सव मासॊत्सव संवत्सरॊत्सवादि विविधॊत्सव कृतानंदः

श्रीमदानंदनिलयविमानवासः

सततपद्मालयापदपद्मरॆणुसंचितवक्षः स्थलपटवासः

श्रीश्रीनिवासः सुप्रसन्नॊ विजयताम.

श्रीरंगसूरिणॆदं श्रीशैलानंतसूरिवंश्यॆन

भक्त्या रचितं हृद्यं गद्यं गृह्णातु वॆंकटॆशानः

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